Zohar Ki Namaz Ka Tariqa | Namaz Kaise Padhen | ज़ुहर नमाज़ कैसे पढ़ें ?

फ़ज्र की नमाज़ के बाद अब ज़ुहर की नमाज़ वक़्त आ गया और आप जानते ही हैं कि इस्लाम की पाँच फ़र्ज़ नमाज़ों में से एक ज़ुहर की नमाज़ भी है, जो दिन के बीच में यानि दोपहर के वक़्त अदा की जाती है। तो आज हम डिटेल में बात करेंगे कि ज़ुहर की नमाज़ का तरीक़ा (Zohar Ki Namaz Ka Tariqa) क्या है, वक़्त कब शुरू और ख़त्म होता है, कितनी रकातें है, और इसकी नियत कैसे करेंगे?

दोपहर के वक़्त बाज़ारों में चहल-पहल होती है और लोग अपने कामों में डूबे होते है कोई दफ़्तर में, कोई दुकान पर, कोई खेतों में पसीना बहा रहा होता है और इसी भाग-दौड़ के बीच अज़ान की आवाज़ गूँजती है, “हय्या ‘अलस्सलाह… हय्या ‘अलल फ़लाह…”

उसी भीड़ के बीच एक मोमिन अपने काम से सिर उठाकर आसमान की तरफ़ देखता है। वो इंसान अपने कारोबार को थोड़ी देर के रोक कर, वुज़ू करता है, और मस्जिद की तरफ़ रवाना होता है। और अब ऑफिस और दुकान के बाद अपने रब की पुकार पर लब्बैक कहता है और हाज़िरी लगाता है, और ये वक़्त है ज़ुहर की नमाज़ का, वो नमाज़ जो दिन के शोर में भी रूह को ख़ामोशी और तसल्ली अता करती है।

Zohar Ki Namaz Ka Tariqa | Namaz Kaise Padhen

“ज़ुहर” अरबी लफ़्ज़ है जिसका मतलब होता है “दोपहर” या “वो वक़्त जब सूरज ढलने लगे”। इस नमाज़ का मक़सद ये है कि इंसान दिन के शोर गुल में भी अपने रब को याद करे और अपने दिल को ईमान की ठंडक से तर करे।

ज़ुहर की नमाज़ की फ़ज़ीलत बहुत अज़ीम है।

रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया: 

"जो शख़्स ठंडी वक़्त की नमाज़ (ज़ुहर और अस्र) की हिफ़ाज़त करे, वह जन्नत में दाख़िल होगा।"

(सहीह बुख़ारी)

एक और हदीस में फ़रमाया :

रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया: 

"जो शख़्स ज़ुहर से पहले चार रकअत और उसके बाद चार रकअत पढ़े, अल्लाह तआला उस पर जहन्नम की आग हराम कर देगा।"

(तिर्मिज़ी)

शुरू होता है – जब सूरज बिल्कुल सर के ऊपर (आसमान के बीच) से थोड़ा सा पश्चिम की तरफ झुक जाए, और ये लगभग 12:15 बजे होता है (जगह के हिसाब से थोड़ा फर्क होता है) तब से जोहर का वक़्त शुरू हो जाता है।दोपहर में सूरज के ढलने के बाद शुरू होता है

ख़त्म होता है – अस्र से पहले तक रहता है जैसे ही अस्र का वक़्त शुरू होता है वैसे ही ख़म हो जाता है

ज़ुहर की नमाज़ में कुल 12 रकअतें पढ़ी जाती हैं:

  • 4 सुन्नत-ए-मुअक्कदा (पहले)
  • 4 फ़र्ज़
  • 2 सुन्नत (फ़र्ज़ के बाद)
  • 2 नफ़्ल (फ़र्ज़ के बाद)

इसमें 4 रकात सुन्नत-ए-मुअक्कदा जो पहले पढ़ी जाती हैं, हदीस में उसकी फ़ज़ीलत कुछ इस तरह बयान हुई है कि रसूलुल्लाह ﷺ इन चार रकअत को हमेशा पढ़ा करते थे, और इसे कभी नहीं छोड़ा। इसीलिए इसे सुन्नत-ए-मुअक्कदा कहा गया और

नबी पाक अ.स. ने फ़रमाया :

مَنْ صَلَّى أَرْبَعَ رَكَعَاتٍ قَبْلَ الظُّهْرِ حَرَّمَ اللَّهُ جَسَدَهُ عَلَى النَّارِ

“जो शख़्स ज़ुहर से पहले चार रकअत पढ़े, अल्लाह तआला उस पर जहन्नम की आग हराम कर देता है।”
(तिर्मिज़ी: 428, सह़ीह अल-अलबानी)

यानी ये चार रकअतें जहन्नम से हिफ़ाज़त का ज़रिया हैं।

Zohar Ki Namaz Ka Tariqa

नियत दिल में कर लेना काफ़ी है, लेकिन ज़बान से अगर कहना चाह रहे हैं तो इस तरह कहें:

"नियत करता हूँ मैं चार रकअत नमाज़ फ़र्ज़ ज़ुहर की, या चार रकअत नमाज़ सुन्नत ज़ुहर की वास्ते अल्लाह तआला के, रुख़ मेरा काबा शरीफ़ की तरफ़।"

कोई ख़ास सूरह मुक़र्रर नहीं, बल्कि कुरआन में से आप कोई भी सूरह पढ़ सकते हैं।

अगर भूल या नीन्द या किसी और वजह से ज़ुहर की नमाज़ छूट जाए तो बाद में उसकी क़ज़ा करना ज़रूरी है। क्यूंकि

रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया: 

"जो नमाज़ भूल जाए या सो जाए, तो जैसे ही याद आए, उसे पढ़ ले।" 

(सहीह मुस्लिम)

नोट : जानबूझकर कोई भी फ़र्ज़ नमाज़ छोड़ना गुनाहे कबीरा है। अगर कोई नमाज़ एक दो बार छूट जाती है तो तौबा और इस्तग़फ़ार करे और हमेशा इस कोशिश में रहे कि दोबारा कभी न छूटे।

  • ये नमाज़ चूंकि दोपहर के वक़्त होती है, इसलिए इस नमाज़ में आम तौर से बहुत से लोग ज़्यादा गर्मी या बिज़ी होने की वजह से नमाज़ देर से पढ़ते हैं।
  • कुछ लोग सिर्फ़ फ़र्ज़ रकअतें पढ़कर चले जाते हैं, जबकि सुन्नत रकअतें भी नबी ﷺ की मुस्तहब आदत थीं और फ़र्ज़ से पहले की सुन्नतों की फ़ज़ीलत तो ऊपर आप पढ़ ही चुके हैं।
  • काम या कारोबार में मशग़ूल रहकर नमाज़ को आख़िरी वक़्त में धकेल देना, ये लापरवाही है और अगर छोड़ दिया तो महरूमी है ।

नमाज़ के बाद तस्बीहात की जा सकती हैं

  • 33 बार सुब्हानअल्लाह
  • 33 बार अल्हम्दुलिल्लाह
  • 34 बार अल्लाहु अकबर

और फिर आयतुल कुर्सीसूरह अल-इख़लास, फलक़, नास की तिलावत। ये अज़कार इंसान को ग़फलत से बचाते हैं और दिल में नूर पैदा करते हैं।

जिस्मानी लिहाज़ से देखा जाए तो ज़ुहर का वक़्त वो होता है जब शरीर थकने लगता है तो ऐसे वक़्त में नमाज़ पढ़ने से ख़ून का दौरान बेहतर होता है, और मानसिक सुकून मिलता है। और रोहानी तौर पर देखा जाए, तो ये नमाज़ इंसान को याद दिलाती है कि चाहे दिन में हम कितना ही बिज़ी क्यूँ न रहें, लेकिन रब का हक़ सबसे बड़ा है।

ज़ुहर की नमाज़ से जुड़े आम सवालात

Q1. अगर ज़ुहर की नमाज़ छूट जाए तो क्या करना चाहिए?

अगर भूल या नींद की वजह से छूट जाए, तो जैसे ही याद आए क़ज़ा अदा करें।

Q3. गर्मी के मौसम में ज़ुहर की नमाज़ देर से पढ़ना कैसा है?

रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया: “जब गर्मी बहुत ज़्यादा हो जाए, तो ज़ुहर की नमाज़ ठंडक आने तक देर से पढ़ो।” (सहीह बुख़ारी) यानि अव्वल वक़्त से थोड़ा आगे बढ़ कर पढो और गर्मी में थोड़ी देर बाद पढ़ना सुन्नत भी है।

Q4. क्या ज़ुहर की सुन्नतें छोड़ने से नमाज़ अधूरी हो जाती है?

नमाज़ तो मुकम्मल हो जाती है, लेकिन सुन्नत-ए-मुअक्कदा छोड़ना मकरूह (नापसंद) है। क्योंकि रसूलुल्लाह ﷺ इन सुन्नतों की बहुत पाबंदी करते थे। इसलिए बेहतर यही है कि सुन्नतें कभी न छोड़ी जाएँ।

Q5. क्या सफ़र (travel) में ज़ुहर की नमाज़ कम की जा सकती है?

जी हाँ, मुसाफ़िर को ज़ुहर की चार रकात फ़र्ज़ नहीं पढ़नी है बल्कि इसके बजाए सिर्फ़ दो रकअत ही पढ़नी है क्यूंकि रसूलुल्लाह ﷺ सफ़र में हमेशा चार की जगह दो रकअतें अदा करते थे। (सहीह बुख़ारी: 1090)

ख़ुलासा

जब दुनिया का शोर बढ़ जाता है, हर कोई अपने कामों में बिज़ी होता है उस वक़्त मुआज्ज़िन की आवाज़ याद दिलाती है कि ए लोगों ! गाफ़िल न हो और याद दिलाती है कि ज़ुहर की नमाज़ सिर्फ़ एक इबादत नहीं, बल्कि दिन की ठंडक और रूह की राहत का ज़रिया है।

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