Fajr Namaz Kaise Padhen | Fajr Namaz Ka Tarika

फ़ज्र नमाज़ इस्लाम की पाँचों फ़र्ज़ नमाज़ों में सबसे पहली नमाज़ है। ये वो इबादत है जो एक मुसलमान को मीठी नींद से जगती है नर्म नर्म बिस्तरों को छोड़ कर अपने रब के सामने हाज़िर होने की दावत देती है और एक बा बरकत दिन की शुरुआत करने में मदद करती है तो आज हम बताएँगे कि Fajr Namaz Kaise Padhen और इस नमाज़ की फ़ज़ीलत, टाइम, नियत का तरीक़ा क्या है इस पर भी बात करेंगे |

फ़ज्र की नमाज़ का मतलब आप ये बिलकुल न लें कि सिर्फ़ एक फ़र्ज़ अदा करना है, बल्कि यह नमाज़ इंसान को अल्लाह की याद, अनुशासन, और रूहानी सुकून की राह पर ले जाती है। सुबह-सुबह का वो सन्नाटा, ठंडी हवा, और अज़ान की आवाज़, ये सब मिलकर दिल में एक नई रौशनी और ईमान की गर्मी भर देते हैं और ये ईमान कि गर्मी जहन्नम की गर्मी से नजात दिलाती है | रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:

“जो शख़्स फ़ज्र और अस्र की नमाज़ की पाबंदी करता है, वह जहन्नम से महफूज़ रहेगा।”
(सहीह मुस्लिम)

फ़ज्र की नमाज़ उस शख़्स की पहचान है जो अल्लाह की याद में सब से पहले उठता है जब और लोग गहरी नींद में होते हैं उस वक़्त वो अपने रब के सामने झुकता है।

Fajr Namaz Kaise Padhen

“फ़ज्र” का मतलब होता है “सुबह का उजाला” या “सूरज निकलने से पहले की रौशनी”

यह वो वक़्त है जब रात का अंधेरा धीरे-धीरे ख़त्म हो रहा होता है और आसमान में रौशनी और सफ़ेदी नज़र आना शुरू होती है। इसी सफ़ेदी को “सुब्ह-ए-सादिक़” (सच्ची सुबह) कहते हैं और इसी वक़्त से फ़ज्र की नमाज़ का वक़्त शुरू हो जाता है।

1. अल्लाह की हिफ़ाज़त

रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया: 

“जो शख़्स फ़ज्र की नमाज़ अदा करता है, वो अल्लाह की हिफ़ाज़त में आ जाता है।”

(सहीह मुस्लिम)

यानि आप चाहे सफ़र में हो या काम में, अगर फ़ज्र नमाज़ अदा कर लेते हैं तो पूरा दिन अल्लाह की रहमत और हिफ़ाज़त में होते हैं।

2. रौशनी का वादा

एक और हदीस में नबी ﷺ ने फ़रमाया: 

“जो शख़्स अंधेरे में (यानी फ़ज्र और ईशा की नमाज़ों में) मस्जिद जाता है, उसे क़ियामत के दिन पूरी रौशनी दी जाएगी।”

(सहीह बुख़ारी व मुस्लिम)

यानी फ़ज्र नमाज़ की पाबंदी आख़िरत में उस वक़्त रौशनी अता करेगी जब जब बाक़ी लोग अंधेरे में होंगे।

3. दिन की बरकत की दुआ

रसूलुल्लाह ﷺ ने अपने उम्मत के लिए दुआ की: 

“ऐ अल्लाह! मेरी उम्मत के सुबह के वक़्त में बरकत अता फ़रमा।”

(सुन्नन अबू दाऊद)

हमारे नबी स.अ. ने सुबह के वक़्त में बरकत के लिए ख़ास दुआ की है इसलिए जो भी अपना दिन अल्लाह की याद से शुरू करेगा उसके कामों में बरकत और ताज़गी उसका मुक़द्दर बन जाती है।

5. जन्नत की बशारत

रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:

“जो फ़ज्र और अस्र की नमाज़ की पाबंदी करे, वह जन्नत में दाख़िल होगा।”
(सहीह बुख़ारी)

यानी ये दो नमाज़ें अपने पढ़ने वाले को जहन्नम से बचाकर जन्नत के दरवाज़े तक पहुँचा देती हैं।

शुरू कब होता ?

फ़ज्र नमाज़ का वक़्त “सुब्ह-ए-सादिक़” से शुरू होता है और “सुब्ह-ए-सादिक़” कहते हैं उस वक़्त को जब रात का अंधेरा ख़त्म और सुबह की सफ़ेदी उभरने लगती है बस, यहीं से फ़ज्र की नमाज़ का टाइम शुरू हो जाता है |

ख़त्म कब होता है ?

जैसे ही सूरज की पहली किरण निकलती है, फ़ज्र का वक्त ख़त्म हो जाता है, (कैलंडर में टाइम देखा जा सकता है) यानि फ़ज्र की नमाज़ का वक्त सूरज निकलने से ठीक पहले तक रहता है, और सूरज निकलने के बाद नमाज़ अदा करना जायज़ नहीं होता।

जैसे अगर किसी शहर में सूरज 6:15 बजे निकलता है, तो फ़ज्र की नमाज़ का वक्त लगभग 4:45 बजे से 6:10 बजे तक रहेगा (यह मौसमी तौर पर बदलता रहता है)। इसलिए नमाज़ पढ़ने में देर करना या “सूरज निकलने के बिलकुल करीब” पढ़ना मक़रूह (नापसंद) है।

Fajr Namaz Kaise Padhen

फ़ज्र नमाज़ में कुल 4 रकअतें होती हैं, 2 सुन्नत हैं और 2 फ़र्ज़।

सुन्नतें – इसमें दो रकअत सुन्नत ऐसी हैं जिन्हें रसूलुल्लाह ﷺ ने ज़िन्दगी भर कभी नहीं छोड़ा, यहाँ तक कि सफ़र में भी नहीं। और इन 2 सुन्नतों के बारे में हदीस में आता है:

रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया :

“फ़ज्र की दो रकअतें दुनिया और उसमें जो कुछ है, सब से बेहतर हैं।”

(सहीह मुस्लिम)

सिर्फ़ दो छोटी रकअतों की इतनी बड़ी क़ीमत! इन दो रकअतों में रसूलुल्लाह ﷺ अक्सर सूरह अल-काफ़िरून और सूरह अल-इख़लास पढ़ा करते थे।

फ़र्ज़ – सुन्नत के बाद दो रकअत फ़र्ज़ हैं, और फ़र्ज़ वो रकअतें होती हैं जो हर मुसलमान पर लाज़िमी (फ़र्ज़) हैं। अगर कोई जानबूझकर इन्हें छोड़ देता है, तो वह बहुत बड़ा गुनाहगार होता है।

नियत का मतलब है “दिल में यह इरादा करना कि मैं कौन-सी नमाज़ पढ़ने जा रहा हूँ, किस के लिए, और किस वक़्त। जैसे “मैं नियत करता हूँ दो रकअत नमाज़ सुन्नत फ़ज्र की,या दो रकात नमाज़ फ़र्ज़ फ़ज्र की, वास्ते अल्लाह तआला के, मुँह मेरा काबे शरीफ़ की तरफ़।”

नमाज़ के बाद क़ुरआन की तिलावत करना, दुआएँ पढ़ना, और ज़िक्र करने पर बड़े इनामात का वादा किया गया है |रसूलुल्लाह ﷺ नमाज़ के बाद कुछ देर तक ज़िक्र में बैठा करते थे जब तक सूरज निकल न जाए।

रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया: 

“जो शख़्स फ़ज्र की नमाज़ जमात से पढ़े, फिर सूरज निकलने तक अल्लाह को याद करे, और फिर दो रकअत
(इशराक़) पढ़े, उसे हज और उमरा का पूरा सवाब मिलेगा।”

(तिर्मिज़ी)

फ़ज्र की नमाज़ का वक़्त बहुत छोटा होता है यानि सुब्ह-ए-सादिक़ से लेकर सूरज निकलने तक। तो अगर किसी मजबूरी की वजह से नमाज़ इस वक़्त में न हो पाई हो और छूट गयी हो, तो शरियत ने इसके लिए क़ज़ा (बाद में अदा करना) का हुक्म दिया है।

रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया: 

“जो शख़्स नमाज़ भूल जाए या सो जाए, तो जब याद आए उसी वक़्त उसे पढ़ ले, यही उसकी क़ज़ा है।”

(सहीह मुस्लिम)

इस हदीस का मतलब है कि अगर नींद या भूल की वजह से आपकी फ़ज्र की नमाज़ छूट गयी, तो जैसे ही आँख खुले या याद आए, फ़ौरन वुज़ू करके नमाज़ अदा करें। लेकिन अगर सूरज निकल चुका है, तो अभी नमाज़ नहीं पढ़ी जा सकती। इसलिए आप 15–20 मिनट इंतज़ार करें जब तक सूरज थोड़ी ऊँचाई पर न आ जाए (क्यूंकि इस वक़्त में नमाज़ मकरूह है), फिर दो रकअत सुन्नत और दो रकअत फ़र्ज़ दोनों की क़ज़ा पढ़ लें।

जो इंसान जानबूझकर फ़ज्र की नमाज़ छोड़ देता है वो कबीरा गुनाह (बहुत बड़ा गुनाह) करता है, और कबीरा गुनाह के लिए सच्चे दिल से माफ़ी माँगना ज़रूरी है।

क़ज़ा का तरीका

क़ज़ा नमाज़ का तरीका वही है जो असली नमाज़ का होता है, बस नियत में “क़ज़ा” का इज़हार किया जाता है।

Fajr Namaz Kaise Padhen

1. देर से उठना या नमाज़ का वक्त गँवा देना

सबसे आम गलती यही है कि नींद के आगे हार जाना, कई लोग अलार्म लगाते हैं लेकिन उठ नहीं पाते, इसका हल यही है कि

  • सोने से पहले नीयत करें कि “मुझे फ़ज्र के लिए उठना है।”
  • अलार्म दूर रखें ताकि उठकर बंद करना पड़े।
  • अगर मुश्किल हो, तो किसी दोस्त या घर के शख़्स से कहें कि जगाएँ।
  • और सबसे बढ़कर अल्लाह से दुआ करें : “ऐ अल्लाह! मुझे फ़ज्र की नमाज़ के लिए उठने की तौफ़ीक़ दे।”

2. सुन्नत छो़ड़ देना

कई लोग जल्दी में सिर्फ़ दो रकअत फ़र्ज़ पढ़ते हैं और सुन्नत छोड़ देते हैं। जबकि नबी करीम ﷺ ने दो रकअत सुन्नत को कभी नहीं छोड़ा, सफ़र में भी नहीं। इसलिए अगर वक़्त है, तो पहले 2 रकअत सुन्नत पढ़ें उसके बाद फ़र्ज़ पढ़ें, लेकिन अगर वक़्त कम हो और सूरज निकलने का डर हो, तो पहले फ़र्ज़ अदा करें।

3. नमाज़ के बाद तुरंत उठ जाना

कई लोग फ़ज्र की नमाज़ पढ़ते ही उठ कर चले जाते हैं, जबकि फ़ज्र के बाद का वक्त बरकतों से भरा होता है। ऐसे में कुछ मिनट अल्लाह का ज़िक्र, दुआ और क़ुरआन की तिलावत करना चाहिए और अगर हो सके, तो सूरज निकलने तक बैठे रहें क्यूंकि इसका सवाब हज और उमरा जैसा है (तिर्मिज़ी)।

  • फ़ज्र की नमाज़ सिर्फ़ इबादत नहीं, बल्कि जिस्म, दिल और रूह — तीनों की सेहत का ज़रिया है। जिससे दिमाग़ी सुकून, हार्मोनल बैलेंस और सकारात्मक (Positive) सोच में इज़ाफ़ा होता है।
  • साइंस के अनुसार, जो इंसान सुबह जल्दी उठता है, वो पूरे दिन ज़्यादा उत्पादक (productive) और ज़हनी तौर पर एक्टिव रहता है।
  • फ़ज्र की नमाज़ के बाद जब इंसान ताज़ी हवा में सांस लेता है, तो फेफड़ों में ऑक्सीजन का स्तर बढ़ता है, जिससे शरीर और दिमाग़ दोनों को ताज़गी मिलती है।
  • साइंस ये भी कहता है कि early risers यानी सुबह जल्दी उठने वाले लोग ज़्यादा आत्मविश्वासी, अनुशासित और शांत स्वभाव के होते हैं।

Q1: फ़ज्र की नमाज़ का सही वक़्त कब शुरू होता है और कब तक रहता है?

A: फ़ज्र की नमाज़ का वक़्त सुब्ह-ए-सादिक़ (जब आसमान में हल्की सफ़ेदी फैलती है) से शुरू होता है और सूरज निकलने तक रहता है। जैसे ही सूरज की पहली किरण उभरी, नमाज़ का वक़्त ख़त्म हो जाता है।( कैलंडर में सूरज निकलने का टाइम देखा जा सकता है)

Q2: अगर फ़ज्र की नमाज़ नींद की वजह से छूट जाए तो क्या करें?

A: अगर आप सोते रह गए या भूल गए, तो गुनाह नहीं है। जैसे ही उठें, तुरंत वुज़ू करें और नमाज़ की क़ज़ा करें, पहले सुन्नत, फिर फ़र्ज़। लेकिन अगर जानबूझकर छोड़ी है, तो ये कबीरा गुनाह है इसके लिए तौबा भी करना ज़रूरी है।

Q3: क्या फ़ज्र की सुन्नत नमाज़ सूरज निकलने के बाद पढ़ सकते हैं?

A: अगर सुन्नत रह जाए, और सूरज उग आया हो, तो सूरज के ऊपर आने के 15–20 मिनट बाद (यानि इशराक़ के वक्त) उसकी क़ज़ा अदा करना मुस्तहब (बेहतर) है।

Q4: क्या फ़ज्र की नमाज़ अकेले पढ़ना जायज़ है?

A: हाँ, जायज़ है लेकिन मर्दों के लिए मस्जिद में जमात से पढ़ना सुन्नत-ए-मुअक्कदा है।
रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया: “जमात की नमाज़ अकेले की नमाज़ से सत्ताईस गुना ज़्यादा सवाब रखती है।” (सहीह बुख़ारी)

Q5: फ़ज्र के बाद सोना कैसा है?

A: शरियत में मनाही नहीं, लेकिन सुन्नत के मुताबिक़, बेहतर है कि फ़ज्र के बाद कुछ देर ज़िक्र, दुआ या इशराक़ की नमाज़ में वक्त बिताएँ, इसके बाद अगर ज़रूरत हो तो सो सकते हैं।

Q6: अगर फ़ज्र की नमाज़ में देर हो जाए और सूरज निकलने के करीब हो तो क्या करें?

A: अगर इस बात का डर हो कि कि सुन्नत पढ़ेंगे तो वक़्त ख़त्म हो जायेगा तो पहले फ़र्ज़ नमाज़ अदा करें, फिर बाद में इशराक़ के वक्त्र सुन्नत पढ़ लें। क्यूंकि जब सूरज निकल आये उस वक्त कोई नमाज़ अदा नहीं की जाती।

Q7: फ़ज्र नमाज़ में कौन-सी सूरहें पढ़ी जाती हैं और क्यों?

रसूलुल्लाह ﷺ फ़ज्र की फ़र्ज़ नमाज़ में आमतौर पर लंबी सूरहें पढ़ा करते थे, क्योंकि यह वक़्त सुकून और ध्यान का होता है।

फ़ज्र की नमाज़ मुसलमान की ज़िन्दगी की पहली जीत है, नींद पर जीत, शैतान पर जीत, और अपने नफ़्स पर जीत। जो इंसान इस नमाज़ को पाबंदी से अदा करता है, अल्लाह तआला उसके दिन को नूर और दिल को सुकून से भर देता है।

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