Wuzu Ko Todne Wali 10 Chizen | वुज़ू को तोड़ देने वाली चीज़ें

जब कोई मुसलमान नमाज़ के लिए खड़ा होता है, या क़ुरआन को हाथ लगाना चाहता है, या काबे के तवाफ़ का इरादा करता है, तो उससे पहले वह अपने अपने हाथ, मुँह, चेहरे और पैर को पानी से धोकर एक तरह की ताज़गी और पाकी हासिल करता है इस्लाम में इसी अमल को वुज़ू (Wuzu) कहा जाता है। आपने step by step वज़ू का तरीक़ा पिछली पोस्ट में तो जान लिया लेकिन  Wuzu Ko Todne Wali 10 Chizen शायद आपको क्लियर न हों, तो चलिए आज तफ़सील से समझते हैं कि वजू कैसे टूटता है |

इस्लाम में वुज़ू (Wuzu In Islam) सिर्फ़ जिस्मानी सफ़ाई नहीं, बल्कि रूहानी सफ़ाई का भी ज़रिया है, यानि जब इंसान अपने हाथ, मुँह, चेहरा धोता है, तो सिर्फ़ उसके जिस्म पर जमी गन्दगी या मैल ही साफ़ नहीं हो होता, बल्कि उसके साथ-साथ उसके दिल पर जमी़ हुई ग़फ़लत की गर्द भी उतरती जाती है।

इसीलिए क़ुरान में अल्लाह तआला ने हर नमाज़ से पहले वज़ू को ज़रूरी क़रार दिया है |

क़ुरआन-ए-करीम में अल्लाह तआला ने फ़रमाया:

"ऐ ईमान वालों! जब तुम नमाज़ के लिए उठो तो अपने मुँह और हाथ को कोहनियों तक धो लिया करो, और अपने सर का मसह करो और अपने पाँव टखनों तक धो लो..."
(सूरह अल-माइदा: आयत 6)

यह आयत हमें बताती है कि वुज़ू सिर्फ़ इबादत की तैयारी नहीं, बल्कि एक इबादत के अंदर की इबादत है और इसीलिए इसका करना ज़रूरी है |

कई बार ऐसा होता है कि हमें एहसास ही नहीं होता कि वुज़ू टूट गया है और दोबारा करने की ज़रुरत है, लेकिन हम उसी हालत में नमाज़ पढ़ लेते हैं। हालाँकि जब वुजू टूट गया और बाकी नहीं रहा तो फिर नमाज़ कैसे होगी, तो हमारा इस बात को जानना ज़रूर है कि “वो कौन-कौन सी चीज़ें हैं जिनसे वुज़ू टूट जाता है और कौन सी चीज़ें हैं जिनसे नहीं टूटता।” तो चलिए जानते हैं

Wuzu Ko Todne Wali 10 Chizen | वुज़ू को तोड़ देने वाली चीज़ें

    इस्लामी हुक्म ये कहता है कि अगर किसी के जिस्म से अगले या पिछले रास्ते से कोई चीज़ जैसे पेशाब, पख़ाना, या रियाह (गैस) वगैरा बाहर निकल जाए, तो उसका वुज़ू टूट जाता है और बाक़ी नहीं रहता | यह हुक्म बताता है कि इन चीज़ों का जिस्म से निकलना नजासत (गन्दगी) है। इसीलिए पेशाब या पख़ाने के बाद जब आप ताज़ा वुज़ू कर लेंगे तभी नमाज़ पढ़ना या कुरआन को छूना जाइज़ होगा।

    नोट : यहाँ पर एक बात समझ लें कि अगर वज़ू न हो तो क़ुरआन पढ़ तो सकते हैं लेकिन छू नहीं सकते, लेकिन अगर यूँही ज़बानी बगैर छुए पढ़ना है तो पढ़ लें, लेकिन अगर क़ुरान लेकर बैठना है और पेज उलटना पलटना है तो wuzu ज़रूरी है, बेहतर यही है कि आप जब क़ुरान की तिलावत करें तो वजू कर लिया करें |

    इस पॉइंट को पढ़ने से पहले ये जान लेना ज़रूरी है कि मर्द और औरत की अगली शर्मगाह से पेशाब के अलावा 3 क़िस्म के माद्दे( liquid) निकलते हैं (1) मनी (2) मज़ी (3) वदी, तो मनी के निकलने पर तो ग़ुस्ल वाजिब हो जाता है इसकी तफ्सील आप गुस्ल की पोस्ट में पढ़ सकते हैं, यहाँ पर मज़ी और वदी के बारे में जान लीजिये

    जब किसी इंसान को शह्वत (sexual desire) या जिस्मानी जोश (physical excitement) महसूस होता है, जैसे कोई अपनी बीवी से क़रीब हो या ऐसा कोई ख़याल आये तो उस वक़्त पेशाब के रास्ते से हल्की, पतली और चिपचिपी सफ़ेद liquid निकलता है उसे “मज़ी” कहा जाता है।

    तो अगर मज़ी निकल आए तो वुजू टूट जाता है, लेकिन इससे ग़ुस्ल फ़र्ज़ नहीं होता, बस वुज़ू दोबारा करना है और कपड़े या जिस्म पर जहाँ मज़ी लगी हो वह हिस्सा धो लेना ज़रूरी है।

    ये एक सफ़ेद या धुंधला सा liquid है, जिसे वदी कहा जाता है। यह आमतौर पर पेशाब के बाद या ज़्यादा वज़न उठाने के बाद निकलता है, इसके निकलने पर वुज़ू टूट जाता है, तो अगर नमाज़ पढ़ना है तो ये कपड़े या जिस्म के जिस हिस्से पर लग जाये वह धोकर वुज़ू फिर से करना वाजिब (ज़रूरी) होता है।

    Wuzu Ko Todne Wali 10 Chizen

    नींद इंसान का होश खत्म कर देती है और उस से वुजू टूट जाता है, लेकिन यहाँ पर 2 बातें समझ लेना ज़रूरी है कि अगर कोई आदमी इस तरह से टेक लगा कर सो जाए कि अगर उसकी टेक (सहारा) हटा दी जाए तो वो गिर पड़े, तो यह गहरी नींद मानी जाएगी और इससे वुज़ू टूट जाएगा।

    लेकिन अगर कोई इंसान बगैर टेक लगाये यूँही बैठा हुआ है, और हल्की सी झपकी ले ली,तो वुज़ू नहीं टूटेगा, क्योंकि बगैर टेक लगाये शख्स गहरी नींद में नहीं जाता वो अपने होश में रहता है |

    अगर किसी ज़ख्म, फोड़े या जिस्म के किसी हिस्से से खून या पीप बहकर अपनी जगह से निकल जाए,तो वुज़ू टूट जाता है। लेकिन जब तक वो अपनी जगह पर ही है यानी ज़ख्म से निकल कर बहा नहीं तो वुज़ू नहीं टूटेगा।

    मिसाल के तौर पर: अगर किसी की उंगली कट गयी और खून की हल्की सी लाल परत आई लेकिन वो बहा नहीं तो वुज़ू नहीं टूटा। लेकिन अगर खून अपने ज़ख्म से निकल कर बह गया तो वुज़ू टूट गया। वुज़ू टूटने के लिए सिर्फ़ खून का निकलना नहीं बल्कि इतना निकले कि ज़ख्म से निकल कर बह जाये चाहे एक ही दो बूँद हो तो वुजू टूट जायेगा |

    जी हाँ, उल्टी होने से भी वुज़ू टूट जाता है लेकिन ये भी समझ लें कि अगर उल्टी इतनी ज़्यादा हुई कि मुँह भर जाए तो वुज़ू टूट जायेगा। मगर अगर सिर्फ़ हल्की मितली हुई या थोड़ी सी उल्टी हुई जो मुँह भर नहीं थी, यानि ज़्यादा नहीं थी, तो वुज़ू नहीं टूटेगा।

    अगर कोई शख़्स नमाज़ की हालत में यानि नमाज़ पढ़ते पढ़ते कोई बात याद आई और इतना ज़ोर से हँस दे कि उसकी हंसी की आवाज़ आस-पास के लोग भी सुन लें, तो वुज़ू टूट जाता है। यह हुक्म ख़ास तौर पर हनफ़ी मसलक में पाया जाता है। बाक़ी मज़ाहिब (जैसे शाफ़ई, मालिकी) का कहना है कि हँसी से सिर्फ़ नमाज़ टूटती है, वुज़ू नहीं। लेकिन फिर भी एहतियात (सावधानी) यही है कि अगर ऐसा हो जाए तो पहले वुज़ू कीजिए, फिर नमाज़ दोबारा पढ़िए।

    अगर कोई इंसान बेहोश हो जाए, बेदिमाग़ी की हालत हो जाये, या नशे में हो और वो होश में ना रहे, तो उसका वुज़ू टूट जाता है, क्योंकि वुज़ू के लिए होश और इरादा ज़रूरी है।

    अगर नमाज़ का वक़्त निकला जा रहा है और पानी न होने की वजह से किसी ने तयम्मुम कर लिया था और बाद में उसे पानी नज़र आ गया या मिल गया, तो उसका तयम्मुम रद्द (अमान्य) हो जाता है, अब उसे पानी से वुज़ू करना पड़ेगा यानि पानी मिल जाने पर तयम्मुम टूट जायेगा ।

    अगर किसी की नाक से खून आ जाये, तो वुज़ू टूट जाता है, लेकिन यहाँ पर ये भी समझना ज़रूरी है कि ज़ख्म तो है लेकिन खून निकला ही नहीं यानी सिर्फ़ ज़ख्म के अंदर है बस थोड़ी सी नमी दिखाई दी तो वुज़ू बाक़ी रहता है।

    अब कुछ बातें जिनमें लोग अक्सर ग़लती कर बैठते हैं, लेकिन हकीक़त में उनसे वुज़ू नहीं टूटता:

    कपड़े बदलनावुज़ू नहीं टूटता
    नाखून या बाल काटनावुज़ू नहीं टूटता
    रोना या आँसू बहानावुज़ू नहीं टूटता
    हल्की नींद या झपकी लेना (जबकि बैठ कर सो रहा हो और टेक न लगाये हो )वुज़ू नहीं टूटता
    थोड़ा खून आना (जो न बहे) वुज़ू नहीं टूटता
    किस करना या गले लगना (जब तक शह्वत (desire) से कुछ discharge न हो)वुज़ू नहीं टूटता

    क्या हँसने से वुज़ू टूट जाता है?

    इसका जवाब दो हिस्सों में है:

    1. एक तो है नमाज़ के बाहर हँसना : अगर आप नमाज़ नहीं पढ़ रहे हैं, बस वैसे ही बातों में या मज़ाक में हँसे, तो इस से वुज़ू नहीं टूटता, चाहे ज़ोर से हँसे या हल्का मुस्कुराएँ |
    2. दूसरा है  नमाज़ के अंदर हँसना : अगर आप नमाज़ की हालत में इतना ज़ोर से हँसते हैं कि दूसरे लोगों तक आवाज़ पहुँच गयी तो नमाज़ के साथ वुज़ू भी टूट जाता है |

    नतीजा (Conclusion)

    याद रखें — “पाकी आधा ईमान है।”

    (الطُّهُورُ شَطْرُ الْإِيمَانِ — हदीस शरीफ़)

    इसलिए हर मुसलमान को चाहिए कि वो नमाज़ से पहले ठीक से वुज़ू करे, और अगर कोई ऐसी हालत पेश आए जिससे वुज़ू टूट सकता है, तो फौरन नया वुज़ू करे ताकि उसकी इबादत क़बूल और मुकम्मल हो सके।

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