आपको याद रखना चाहिए कि नमाज़ सिर्फ़ एक इबादत नहीं है, बल्कि अल्लाह से मिलने और मुलाक़ात का वक़्त है। और अल्लाह तआला दिन में पाँच बार इंसान को मुलाक़ात के लिए बुलावा भेजते हैं, तो अगर आप सच्चे मुसलमान हैं तो यक़ीनन अपने कारोबार को थोड़ी देर के लिए साइड करके अल्लाह से मुलाक़ात के लिए ज़रूर जाते होंगे इसलिए आज हम मगरिब की नमाज़ का तरीक़ा (Magrib Ki Namaz Ka Tariqa) बताएँगे और नियत कैसे करते हैं? रकाते कितनी हैं? और मगरिब का वक़्त कब से कब तक रहता है इस पर भी बात करेंगे,
प्यारे भाइयों! कैसी अजीब चीज़ है कि हर नमाज़ में एक खास रूहानी रंग है, फज्र में ताज़गी है, ज़ोहर में सुकून है, अस्र में सब्र और इख़्लास है, और फिर मगरिब की नमाज़ में रूह की नर्मी और दिल का लुत्फ़ है। जब उजाले का असर ख़त्म हो रहा होता है और रात अपनी चादर फैलाना शुरू कर रही होती है। आसमान के रंग बदल रहे होते हैं, यही वो लम्हा है जब अल्लाह हमें पुकारता है।
2. Magrib Ka मतलब
‘मगरिब’ का मतलब होता है ग़ुरूब होना, यानि सूरज का डूब जाना। अब चूंकि यह नमाज़ ठीक सूरज डूबते ही अदा की जाती है, इसीलिए इसको मगरिब की नमाज़ कहा जाने लगा। और मगरिब का वक़्त वो होता है जब दुनिया से रौशनी ख़त्म और यह अँधेरे की शुरुआत होती है
एक बात और उजाले का ख़त्म होना और अँधेरे का आ जाना इस गहरी हक़ीक़त को बताता है कि जिस तरह सूरज डूबता है, वैसे ही ज़िन्दगी भी एक दिन डूब जाएगी।
3. Magrib Namaz Ki फ़ज़ीलत
फ़रिश्तों की तबदीली (शिफ़्ट बदलना) का वक़्त
नबी ﷺ ने फ़रमाया:
“तुम्हारे पास फ़रिश्ते आते और जाते रहते हैं… और उनकी मुलाक़ात फ़ज्र और मगरिब में होती है।”
— (सहीह बुख़ारी — 555)
यानि इस वक़्त रात वाले फ़रिश्ते आ जाते हैं और दिन वाले फ़रिश्ते अल्लाह के दरबार में हमारी रिपोर्ट पेश करते हैं कि किसको नमाज़ और ज़िक्र की हालत में छोड़ के आये हैं और किसको गुनाह की हालत में छोड़ के आये हैं |
4. मगरिब की नमाज़ का वक़्त (शुरू और खत्म कब होता है?)
शुरू होता है : जैसे ही सूरज डूबता है|
ख़त्म होता है : जब सूरज डूबने के बाद आसमान पर जो सुरखी आती है वो भी ख़त्म हो जाये यानि शाम की लालिमा (शफक़) खत्म होने तक रहता है। लेकिन सुन्नत यही है कि इसे सूरज डूबने के बाद फ़ौरन अदा किया जाए। क्यूंकि
नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया:
“मगरिब का वक़्त सूरज के ग़ुरूब होने से लेकर सुर्ख शफ़क़ (लालिमा) के ख़त्म होने तक है।”
(सहीह मुस्लिम — 612)
मगरिब की नमाज़ तेज़ी से अदा करने वाली नमाज़ है इसमें देर करना मकरूह है, और इसमें सुस्ती नहीं होनी चाहिए।

5. मगरिब की नमाज़ में रकअतें कितनी हैं?
- 3 रकअत फ़र्ज़
- 2 रकअत सुन्नत (मुअक्किदा) रसूलुल्लाह ﷺ मगरिब के बाद 2 रकअत सुन्नत हमेशा पढ़ते थे।
- 2 रकअत नफ़्ल
6. नियत कैसे करें?
नियत दिल में कर लेना काफ़ी है, लेकिन ज़बान से अगर कहना चाह रहे हैं तो कह सकते हैं :
" नियत करता हूँ मैं 3 रकअत नमाज़ फ़र्ज़ मगरिब की, या 2 रकअत नमाज़ सुन्नत मगरिब की वास्ते
अल्लाह तआला के, रुख़ मेरा काबा शरीफ़ की तरफ़।
7. क़िराअत (कौन सी सूरहें पढ़ी जाएँ?)
पहली दो रकअतों में सूरह फ़ातिहा के बाद कोई छोटी सूरह पढ़ी जाए। और आम तौर से रसूलुल्लाह ﷺ मगरिब में छोटी-छोटी सूरतें पढ़ा करते थे |
8. क़ज़ा और अहकाम
अगर मगरिब की नमाज़ छूट जाए, तो जितनी जल्दी हो सके पढ़ लें। और ध्यान रखें: कि इशा का वक़्त शुरू होने से पहले पढ़ें वरना वक़्त निकल जाने के बाद क़ज़ा करनी होगी ।
9. आम गलतियाँ
सिर्फ़ फ़र्ज़ पढ़कर भाग जाना:
आम तौर से लोग जल्दी में सिर्फ़ 3 रकात फ़र्ज़ पढ़ते हैं और 2 रकअत सुन्नत छोड़ कर मस्जिद से निकल जाते हैं जब कि उनको सुन्नत छोड़ने से पहले रखना चहिये कि यह सुन्नत है, और सुन्नत का मतलब है नबी करीम ﷺ का तरीका, इसलिए सुन्नत को हल्के में ना लें।
10. नमाज़ के बाद के अज़कार और दुआएं
मगरिब के बाद यह दुआएं पढ़ना बहुत फ़ायदेमंद होता हैं:
- 3 बार अस्तग्फिरुल लाह
- आयत-उल-कुर्सी
- सूरह इख़लास, फ़लक़, नास — 3-3 बार
(हिफाज़त और रूहानी सुकून के लिए)
मगरिब की नमाज़ के बाद पढ़ा जाने वाला एक मसनून ज़िक्र है:
“اللَّهُمَّ أَجِرْنِي مِنَ النَّارِ”
“Allahumma ajirni minan naar”
अल्लाहुम्मा अजिरनी मिनन-नार
(यानी: ए अल्लाह! मुझे आग (जहन्नम) से पनाह दे)
नबी ﷺ ने फ़रमाया:
“जब तुम मगरिब की नमाज़ से फ़ारिग हो जाओ तो सात बार कहो
:اللَّهُمَّ أَجِرْنِي مِنَ النَّارِ
क्योंकि अगर वह शख़्स उसी रात मर जाए तो वह जहन्नम से बचा लिया जाएगा।”
(सुनन अबू दाऊद – 5079, हसन हदीस)
11. जिस्मानी और रूहानी फ़ायदे
जिस्मानी फ़ायदे:
- मगरिब के वक़्त शरीर की ऊर्जा कम होती है, नमाज़ शरीर को रिलैक्स करती है।
- सज्दा ब्लड सर्कुलेशन को नॉर्मल करता है।
- तनाव, थकान और दिमागी बोझ कम होता है।
रूहानी फ़ायदे:
- दिन भर की ग़लतियों का बोझ उतर जाता है।
- इंसान दुनिया से हटकर अपने रब से जुड़ जाता है।
ख़ुलासा
मगरिब की नमाज़ (Magrib Ki Namaz) दिन के खत्म होने और हिसाब की शुरुआत का अलामत है। जो इंसान मगरिब की नमाज़ की पाबंदी करता है, उसके दिल में नर्मी पैदा होती है, सोच में गहराई आती है और ज़िन्दगी में बरकतें उतरती हैं। तो इसलिए दौड़-भाग चाहे जितनी भी हो मगरिब बिलकुल मत छोड़ो। क्यूंकि मगरिब की नमाज़ वो पुल है जो दिन को रात से और इंसान को उसके रब से जोड़ देती है।