Isha Ki Namaz Ka Tariqa | Namaz Kaise Padhen? | इशा की नमाज़

जब आप दिन भर में पांच नमाज़ें पाबन्दी से पढ़ते हैं, तो आप अपने रब से अपने ताल्लुक़ात मज़बूत रखने में कामयाब हैं, और सिर्फ़ ताल्लुक़ात ही नहीं, बल्कि इन नमाज़ो से आपनी रूह को ताज़ा, दिल को ज़िन्दा और दिमाग को सीधा रखने का फ़ायदा भी हासिल कर रहे हैं। और इन 5 नमाज़ों में ख़ास कर इशा का वक़्त वो होता है जब दिन ख़त्म हो जाता है, और दिन भर की भाग-दौड़, के बाद आप अपने रब के सामने खड़े होते हैं, तो उस में क्तोया क्या चीज़ों का ख्याल रखना चाहिए, तो आइये आज इस पोस्ट में Isha Ki Namaz Ka Tariqa सीखते हैं।

रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:

"जिसने फज्र और इशा की नमाज़ जमात से पढ़ी, वह पूरा दिन और पूरी रात अल्लाह की हिफाज़त में है।"

(मुस्लिम)

यानि इशा की नमाज़ सिर्फ़ इबादत ही नहीं है, बल्कि इससे बंदे की हिफ़ाज़त और बरकत की जिम्मेदारी अल्लाह अपने जिम्मे ले लेते हैं।

इशा को अरबी में रात की तारीकी या रात का अँधेरा कहते हैं। अब क्योंकि यह नमाज़ उस वक़्त अदा की जाती है जब सूरज डूबने के बाद पूरी तरह अंधेरा छा चुका होता है, इसलिए इसका नाम इशा रख दिया गया।

इशा की नमाज़ की फ़ज़ीलत के बारे में हदीस में आया है कि जिसने ये नमाज़ पढ़ी, समझो उसने आधी रात क़याम (अल्लाह के सामने नमाज़ में खड़े होना) में गुज़ार दी । नबी ﷺ ने फ़रमाया:

रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:

“जिसने इशा की नमाज़ जमाअत के साथ पढ़ी, तो मानो उसने आधी रात क़ियाम किया, और जिसने फ़ज्र
जमाअत से पढ़ी, तो मानो उसने पूरी रात क़ियाम किया।”

(सहीह मुस्लिम – 656)

अब आप ख़ुद सोचिए कि सिर्फ़ एक नमाज़ अदा करने पर पूरी रात की इबादत का सवाब  ये अल्लाह की अता नहीं तो और क्या है !

एक और हदीस में आता है:

"मुनाफ़िक़ों पर सबसे भारी नमाज़ें इशा और फज्र हैं।"

(बुख़ारी)

इसका मतलब यह नहीं कि जो इशा की नमाज़ नहीं पढ़ता तो वह मुनाफ़िक़ हो गया, बल्कि यह है कि इशा की नमाज़ ईमान को परखने का पैमाना है। क्योंकि इस वक़्त दिन भर की थकन के बाद या तो इंसान आराम चाहता है, या अल्लाह की रज़ा, और ईमानवाले की ख़ासियत है कि वो हमेशा अल्लाह को चुनता है।

शुरू कब होता है – मगरिब का वक़्त जैसे ही ख़त्म होता है, वैसे ही इशा का शुरू हो जाता है, और मगरिब का वक़्त शफक़ (आसमान की लालिमा) के खत्म होने से शुरू होता है।

खत्म कब होता है? – इशा का वक़्त तो सुबहे सादिक़ तक यानि फ़ज्र का वक़्त शुरू होने तक है, लेकिन आधी रात से ज़्यादा देर करना मकरूह है। इसलिए इशा आधी रात से पहले ही अदा करें, लेकिन कोई वजह हो (जैसे सफ़र, बीमारी) में फ़ज्र से पहले तक पढ़ सकते हैं।

इशा की नमाज़ में टोटल 17 रकअतें हैं:

  1. 4 रकअत सुन्नत (ग़ैर-मुअक़्क़दा)
  2. 4 रकअत फ़र्ज़
  3. 2 रकअत सुन्नत (मुअक़्क़दा)
  4. 2 रकअत नफ़्ल
  5. 3 रकअत वित्र (वाजिब)
  6. 2 रकअत नफ़्ल

कई लोग सिर्फ़ 4 फ़र्ज़ और वित्र पढ़कर सो जाते हैं, इससे नमाज़ तो हो जाती है, लेकिन सुन्नत और नफ़्ल छोड़ने से दिल की रौशनी कम हो जाती है। इसलिए जिस तरह दिन भर के काम ज़िम्मेदारी से अदा करते हैं वैसे ही नमाज़ में सुन्नतें भी पूरी बन्दगी और ज़िम्मेदारी से अदा करें |

Isha Ki Namaz Ka Tariqa

नियत दिल में कर लेना काफ़ी है, लेकिन ज़बान से अगर कहना चाह रहे हैं तो कह सकते हैं :

"नियत करता हूँ मैं 4 रकअत नमाज़ फ़र्ज़ वक़्त इशा, या 2 रकअत नमाज़ सुन्नत इशा की, वास्ते अल्लाह तआला के, 
रुख़ मेरा काबा शरीफ़ की तरफ़।

बस दिल में यह एहसास हो कि:

  • मैं अपने रब के सामने हूँ,
  • और यह काम उसकी रज़ा के लिए है।

इशा में सूरह फ़ातिहा के बाद मीडियम सूरह पढ़ें यानि ना बहुत लंबी, और ना बहुत छोटी । जैसे नबी करीम ﷺ अक्सर पढ़ते थे।

अगर इशा की नमाज़ सो जाने या भूल जाने से छूट जाए और क़ज़ा हो जाये तो:

जैसे ही याद आए, क़ज़ा कर लें। लेकिन यहाँ पर एक बात ध्यान रखें कि जब इशा की फ़र्ज़ की क़ज़ा कर रहे हों तो वित्र की क़ज़ा भी करनी होती है। और ग़ैर-ज़रूरी वजह से देर करना या छोड़ देना दिल को सख्त कर देता है और बरकतें छीन लेता है।

  1. नमाज़ को बहुत देर कर देना:
    नींद और काम के चक्कर में बहुत देर करना ठीक नहीं।
  2. सिर्फ फ़र्ज़ पढ़कर सो जाना:
    थकन के चक्कर में सुन्नत और वित्र को बिलकुल भी न छोड़ें क्यूंकि ये नमाज़ की रूह को पूरा करते हैं।
  • “अस्तग़फ़िरुल्लाह” – 3 बार
  • आयतुल कुर्सी – 1 बार
  • सूरह इख़लास, फ़लक़, नास – 3-3 बार
  • फिर रात में लेटने से पहले सूरह मुल्क पढ़ना क़ब्र के अजाब से बचाव का ज़रिया है।

जिस्मानी फ़ायदे:

  • नींद गहरी, क़ुदरती और सुकून वाली हो जाती है।
  • दिमाग का तनाव कम होता है।
  • शरीर की थकान उतरती है।
  • सज्दा ब्लड सर्कुलेशन को संतुलित करता है।

रोहानी फ़ायदे:

  • गुनाहों की धूल उतरती है।
  • इंसान को सब्र, तवक्कुल और शुक्र की तौफ़ीक़ पैदा होती है।
  • सोने से पहले का आख़िरी काम नमाज़ यानि इबादत जिससे रूह पुरसुकून हो जाती है

सवाल: क्या इशा की नमाज़ बिना वित्र के हो जाती है?

हाँ नमाज़ हो जाएगी, लेकिन वित्र पढ़ना वाजिब है और वाजिब फ़र्ज़ के क़रीब होता है मानो फ़र्ज़ के जैसा ही होता है इसलिए इसे छोड़ना बहुत गलत है गुनाहगार होंगे ।

सवाल: इशा कितने बजे तक पढ़ सकते हैं?

आधी रात तक, लेकिन ज़रूरत में फज्र से पहले भी पढ़ सकते हैं।

सवाल: क्या इशा की नमाज़ बैठकर पढ़ सकते हैं?

बीमारी या कमजोरी में हाँ, लेकिन सवाब आधा होगा। अगर बैठने के अलावा तरीका न हो तो सवाब पूरा है।

इशा की नमाज़ दिन भर के सफ़र का अंतिम पड़ाव है। यह नमाज़ इंसान को दुनिया से हटाकर अल्लाह के करीब ले जाती है। यह हमें सिखाती है कि दिन की थकान, तनाव और उलझनें सब अल्लाह के सामने रखकर हल्की कर दो। इसीलिए जो इशा की नमाज़ की पाबंदी करता है:

  • उसकी रात सुकून भरी होती है,
  • दिल रोशन रहता है,
  • और अल्लाह उसकी हिफ़ाज़त अपने जिम्मे ले लेता है।

इशा की नमाज़ को आदत नहीं, मुहब्बत बनाओ। इसी से दिल जगेगा, रूह चमकेगी, और ज़िन्दगी में बरकत उतरती चली जाएगी। अल्लाह तआला हम सबको अमल की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए, आमीन |

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