Juma Ki Namaz Ka Tareeka | Namaz Kaise Padhe? | जुमा की नमाज़

इस्लाम में हफ़्ते भर की इबादत के लिए एक खास दिन रखा गया है, जिसका नाम है जुमा (juma) और यह वह दिन है जो मुसलमानों के लिए ईद के दिन जैसा है। और इसका मक़सद सिर्फ़ एक नमाज़ अदा कर देना नहीं, बल्कि एक मुसलमान के ईमान का इज़हार, उम्मत का इत्तेहाद (एकजुटता) और अपने अन्दर की रूह को ताज़ा करना है।

हर मुसलमान जानता है कि जुमा की नमाज़ फर्ज़ है, लेकिन बहुत से लोग इसकी रूह, इसकी बरकतें और इसके असली मकसद को नहीं समझते। तो आज हम (Juma Ki Namaz Ka Tareeka) जुमा की नमाज़ का तरीक़ा और उसकी अहमियत को जानेंगे |

रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया: 

"जुमा का दिन तुम्हारे दिनों में सबसे अफ़ज़ल दिन है।"

(अबू दाऊद 1047)

इसलिए इस अफज़ल दिन की नमाज़ को रस्म न समझें, क्यूंकि ये दिन सिर्फ़ मुसलमानों के जमा होने, और जमा होकर नमाज़ पढ़ने के लिए ही नहीं है, बल्कि ये दिन एक तरबियती जलसा (training session) की तरह है, जहाँ मुसलमान अपने दिल, अपने विचार, अपनी सोच और अपने ईमान को ताज़ा करते हैं। और यही वह नमाज़ है जो हमें याद दिलाती है कि हम एक उम्मत हैं, बिखरे हुए नहीं।

पहले आप जान लें कि लफ्ज़ जुमा “जमअ” से बना है, जिसका मीनिंग है: इकट्ठा होना, एक जगह जमा होना, और इसका सीधा सा मतलब होता है कि: जुमा वह नमाज़ है जिसमें मुसलमान एक जगह इकट्ठा होकर नमाज़ अदा करते हैं।

जुमा की नमाज़ की फ़ज़ीलतें बहुत ज़्यादा हैं।

  • हदीस 1 : गुनाह माफ़ होंगे
"जो आदमी जुमा के दिन ग़ुस्ल करे, जल्दी मस्जिद आए, खुतबा ध्यान से सुने और खामोशी से बैठे, 
उसके पिछले जुमा से इस जुमा के बीच के गुनाह माफ़ कर दिए जाते हैं।"
(सहीह मुस्लिम 857)
  • हदीस 2 : दुआ कबूल होती है
"जुमा के दिन में एक घड़ी ऐसी होती है जब जो भी बंदा दुआ करे, उसकी दुआ कबूल की जाती है।"
(सहीह बुख़ारी 5294, 935)
  • हदीस 3 : जुमे के दिन फ़रिश्तों का नाम लिखना
"फरिश्ते मस्जिद के दरवाज़ों पर खड़े होते हैं और आने वालों के नाम लिखते हैं..."

(सहीह बुख़ारी 929)

● हदीस 4 : जल्दी आने की फ़ज़ीलत

"जो जुमे के दिन जल्दी जाता है वह ऊंट की क़ुर्बानी जैसा सवाब पाता है।"

(सहीह मुस्लिम 850)

● हदीस 5 : जुमा छोड़ने की चेतावनी

"लोग जुमे की नमाज़ छोड़ने से बाज़ आएँ, वरना अल्लाह उनके दिलों पर मुहर लगा देगा।"

(सहीह मुस्लिम 865)

यानि इस दिन मे गुनाहों का माफ़ होना, दुआओं की क़ुबूलियत, ईमान की ताज़गी सब कुछ मौजूद है।

Juma Ki Namaz Ka Tareeka

वक़्त शुरू होता है : जब ज़ुहर का वक़्त शुरू होता है यानि जुमा की नमाज़ ज़ुहर के वक़्त में ही अदा की जाती है और जुहर का वक़्त जब सूरज अपने झुकाव के बाद दोपहर में पहुँच जाए तब जुमा का वक़्त शुरू।

वक़्त खत्म होता है : जब ज़ुहर का वक़्त खत्म हो जाए यानि जुमा का वक़्त ज़ुहर के खत्म होने तक रहता है, जब ज़ुहर का वक़्त ख़त्म जुमा का वक़्त ख़त्म।

ध्यान रखें: अगर मस्जिद में खुतबा हो गया और नमाज़ हो गई, तो वहां जुमा अदा हो गया। अब अगर किसी वजह से जुमा मिस हो जाए या छूट जाये, तो ज़ुहर की नमाज़ पढ़ी जाएगी न कि जुमा।

जुमा की नमाज़ में टोटल 14 रकातें हैं

  • 4 रकात सुन्नत
  • 2 रकअत फ़र्ज़ (इमाम के पीछे)
  • 4  रकअत सुन्नत
  • 2 रकअत सुन्नत
  • 2 रकअत नफ़्ल

नियत तो दिल में ही की जाती है लेकिन आप जुबान से भी कह सकते हैं

" नियत करता हूँ मैं 2 रकअत नमाज़ फ़र्ज़ वक़्त जुमा, या 4 रकअत नमाज़ सुन्नत जुमा की, वास्ते अल्लाह तआला के, रुख़ मेरा काबा शरीफ़ की तरफ़।

बस दिल में यह एहसास हो कि: मैं अपने रब के सामने हूँ, और यह काम उसी के लिए है।

जुमा की नमाज़ में एक बहुत अहम चीज़ नमाज़ से पहले का खुतबा है। कुरआन में अल्लाह फ़रमाता है:

"जब जुमा के दिन अज़ान दी जाए, तो अल्लाह की याद की तरफ़ दौड़ पड़ो और खरीद-फरोख्त छोड़ दो।
" (सूरह जुमा: 9)
  • खुतबा सुनना वाजिब है।
  • खुतबा के दौरान बात करना भी मना है। यहाँ तक कि अगर कोई बात कर रहा हो तो उस से चुप रहो कहना भी मना है, हदीस में आता है कि
"खुतबे के दौरान अपने साथी को 'चुप रहो' कहना भी गलत है।"

(सहीह बुख़ारी 934)

क्यूंकि दूसरा बोलेगा, फिर तीसरा बोलेगा हर कोई चुप कराने लगेगा तो मस्जिद में शोर होगा इसीलिए आप सन्जीदगी और सुकून से ख़ुत्बा सुनें इधर उधर ध्यान न दें |

एक दूसरी हदीस में है कि खुतबे के दौरान कोई कपड़े या किसी चीज़ से खेलता रहा या मशगूल रहा ख़ुत्बे की तरफ़ पूरा ध्यान नहीं लगाया तो उसने बहुत गलत किया इससे उन नेक पलों का सवाब बर्बाद हो जाता है | हदीस में आता है कि..

"जिसने कंकड़ से खेला उसने बेकार काम किया (सवाब खत्म)।"

(सहीह मुस्लिम 857)

अगर जुमा की नमाज़ मिस हो जाए:

  • मस्जिद न मिली
  • वक़्त निकल गया
  • सफ़र में थे

तो अब फिर जुमा नहीं पढ़ा जायेगा बल्कि 2 रकात जुमा फ़र्ज़ के बजाए 4 रकअत ज़ुहर पढ़ी जाएगी। यानि पूरी नमाज़ जुहर की पढ़ी जाएगी |           

Juma Ki Namaz Ka Tareeka

         

  1. खुतबे के वक्त बातें करना या मोबाइल चलाना।
  2. देर से जाना, जबकि सुन्नत है जल्दी जाना।
  3. खुश्बू न लगाना, जबकि जुमे के दिन इतर लगाकर मस्जिद जाना सुन्नत है।
  4. सिर्फ़ 2 फ़र्ज़ पढ़कर भाग जाना।
  5. नहाए बिना जुमे की नमाज़ पढ़ना।

जुमा के बाद का वक़्त बहुत खास अहमियत वाला है, इसलिए 15 से 20 मिनट या आधा घंटा मस्जिद में रुकें और ज़िक्र करें तिलावत करें, इसका फ़ायदा ये होगा कि पूरे हफ्ते इसका असर और बरकत आप महसूस करेंगे

और ज़िक्र व दुआओं में जुमे के दिन 3 चीज़ें सबसे ज़्यादा पढनी चाहियें |

  • अस्तग़फ़िरुल्लाह (100 बार)
  • दरूद शरीफ़ (जितना हो सके) नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया: “मुझ पर दरूद बढ़ाओ, क्योंकि जुमा का दिन मुबारक है।”
रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:

"तुम्हारे दिनों में सब से अफ़ज़ल दिन जुमा का दिन है, इसलिए इस दिन मुझ पर खूब दुरूद भेजा करो…"

Sunan Abi Dawud — 1047
  • सूरह कहफ़ पढ़ना – यह अगली जुमे तक नूर बनकर चमकती है।
अबू सईद अल-खुदरी (रज़ि.) से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:

"जो व्यक्ति जुम्मा के दिन सूरह अल-कहफ़ पढ़े, उसके लिए दो जुमों के दरमियान नूर
(रोशनी/हिफ़ाज़त/बरकत) पैदा कर दी जाती है।

"Sunan al-Kubra (Imam al-Bayhaqi) हदीस नंबर: 5736

जिस्मानी फ़ायदे:

  • मस्जिद में जमा होना – सोशल हार्मोनी (इंसानी भाईचारा) को बढ़ाता है।
  • एक दूसरे से मिलना – तनाव और अकेलापन कम करता है।

रोहानी फ़ायदे:

  • ईमान ताज़ा होता है।
  • तौबा आसान हो जाती है।
  • रूह हल्की हो जाती है।
  • सोच और दिल दोनों साफ़ हो जाते हैं।

क्या हर मर्द पर जुमा फ़र्ज़ है?

हाँ, बालिग़, समझदार और मुक़ीम (यानि जो सफ़र नहीं कर रहा) मर्द पर जुमा फ़र्ज़ है।

क्या ख़ुत्बा न सुनने वाले की नमाज़ नहीं होती है?

नमाज़ तो हो जाएगी लेकिन ख़ुत्बा न सुनने का गुनाह होगा क्यूंकि ख़ुत्बा वाजिब है  

क्या औरतें जुमा पढ़ें?

औरतों के लिए ज़ुहर अफज़ल है।

क्या सफ़र वाले व्यक्ति पर जुमा फ़र्ज़ है?

नहीं, वह ज़ुहर पढ़ेगा।

क्या जुमा नमाज़ अकेले घर में पढ़ सकते है?

नहीं, ये नमाज़ जमाअत के साथ और मस्जिद में ही पढ़ी जाती है। घरों में अलग-अलग पढ़ लेने से यह जुमा की नहीं, बल्कि वह ज़ुहर हो जाती है। इसलिए ये नमाज़ जमाअत के साथ पढ़ें और मस्जिद में ही पढ़ें |

जुमा की नमाज़ सिर्फ़ एक नमाज़ नहीं बल्कि यह मुस्लिम उम्मत की पहचान है। और ये हमें याद दिलाती है कि हम अकेले नहीं, बल्कि एक ही रब, एक ही रसूल और एक ही किताब के मानने वाले हैं। जुमा की नमाज़ को दिल से, अदब के साथ, जल्दी जाकर, खुतबे समेत, सुन्नत और अज़कार के साथ अदा करो। इससे तुम्हारी ज़िन्दगी में सुकून बढ़ेगा, दिल साफ़ होगा, बरकतें उतरेंगी, दुआएँ क़ुबूल होंगी,

तो मुसलमानों! जुमा को सिर्फ़ अदा मत करो – उसे जियो।

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